टूटेगी इन इलाक़ों की अवैध बिल्डिंग और कॉलोनी
उत्तर प्रदेश का प्रवेश द्वार कहे जाने वाले गाजियाबाद को रियल इस्टेट हब के तौर पर भी जाना जाता है। वैशाली, वंसुधरा, इंदिरापुरम, राजनगर एक्सटेंशन, क्रॉसिंग रिपब्लिक और सिद्धार्थ विहार कॉलोनी में मौजूद गगनचूंबी इमारतें इस शहर को एक पहचान देती हैं। लेकिन इसके उल्ट यह भी एक सच्चाई है कि अवैध रूप से बसी कॉलोनियों का यहां मकडज़ाल है। जिसमें आम जनता फंसी है। गाजियाबाद विकास प्राधिकरण खुद पूरे जिले में 321 कॉलोनियों को अवैध घोषित कर चुका है। हालांकि बिल्डरों को भी क्लीन चिट नहीं दी जा सकती। लेकिन उन्होंने अपने अवैध काम को वैध बनाने के तरीके खोज लिए हैं।
कॉलोनाइजरों ने बसा डाली सैकड़ों अवैध कॉलोनी:
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गाजियाबाद विकास प्राधिकरण द्वारा पूरे जिले 321 कॉलोनियों को चिन्हित किया गया है, जोकि अवैध हैं। जाहिर है इन अवैध कॉलोनियों में लाखों की संख्या में लोग रहते हैं। कॉलोनाइजरों ने प्राधिकरण की नाक तले सैकड़ों अवैध कॉलोनियों को बनाकर वहां लोग भी बसा दिए। जिसपर सालों बाद प्राधिकरण ने संज्ञान लिया और 321 कॉलोनियों को अवैध घोषित किया गया। हालांकि प्राधिकरण के अधिकारियों का दावा है कि इन कॉलोनियों के बाद कोई भी अवैध कॉलोनी नहीं बनने दी जा रही है।
जोन में सबसे ज्यादा तो जोन में सबसे कम अवैध कॉलोनी:
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प्राधिकरण ने पूरे जिले को 8 जोन में बांट रखा है। जिसमें जोन-8 में सबसे ज्यादा 124 अवैध कॉलोनी जबकि जोन-6 में सबसे कम 1 अवैध कॉलोनी है। जोन-1 में 30, जोन-2 में 74, जोन-3 में 39, जोन-4 में 30, जोन-5 में 16 व जोन-7 में 7 अवैध कॉलोनियां हैं। जोन-8 में लोनी क्षेत्र शामिल है। जहां सबसे ज्यादा अवैध कॉलोनियां चिन्हित की गई हैं।
इस तरह बच निकलते हैं बिल्डर:
शहर में बिल्डरों द्वारा बनाए जाने वाले हाऊसिंग प्रोजेक्ट बेशक वैध हों। लेकिन बिल्डर द्वारा इनके निर्माण के दौरान कई बार छेड़छाड़ की जाती है। आरडब्ल्यूए फेडरेशन के अध्यक्ष कर्नल टीपी त्यागी बताते हैं कि बिल्डर तय एफएआर से ज्यादा निर्माण करते हैं और बाद में उसकी कम्पाउंडिंग कराकर कार्रवाई से बच निकलते हैं। फेडरेशन ऑफ एओए के अध्यक्ष आलोक कुमार कहते हैं कि बिल्डर बायर्स की मजबूरी का फायदा नियमों को तोडऩे के लिए उठाते हैं। कम्पलीशन सर्टिफिकेट लिए बगैर ही वो बायर्स को पजेशन दे देते हैं। जिससे बाद में किसी भी प्रकार की कार्रवाई की गुंजाईश कम रह जाती है। इस खेल में छोटे बिल्डर भी शामिल होते हैं, जो नक्शा पास कराने के बाद तय मंजिलों से ज्यादा निर्माण कर लेते हैं।