यह कहानी है डॉ अनूपमा (Dr. Anupama) की जिनका जन्म पटना (Patna) में हुआ है। उन्होंने अपने शुरुआती शिक्षा पटना से ही प्राप्त की है। बातें कर उनके पिता की जाए तो वह एक रिटायर्ड एमआर हैं और उनकी माँ आंगनवाड़ी में काम करती हैं। अपने बचपन से ही पढ़ाई में अव्वल रहने वाली अनूपमा अपने 12वीं की परीक्षा के बाद MBBS का एंट्रेंस एग्जाम दी और पहली ही बार में उसमें सफलता हासिल की। इसके बाद उन्होंने एम एस की प्रवेश परीक्षा दी और उत्तीर्ण होने के बाद उन्होंने बीएचयू (BHU) से मास्टर ऑफ सर्जरी यानी (MS) की डिग्री हासिल की। उसके बाद एक सरकारी अस्पताल में एसआरसीप करने लगी। इसी दौरान उनकी शादी भी हो गई और कुछ समय बाद उन्होंने एक बेटे को जन्म दिया।
डॉक्टर बनने के बाद अनुपमा ने सरकारी अस्पताल में ग्राउंड लेवल पर बहुत सारी कमियाँ देखी। जिसका समाधान करना उन्हें बहुत मुश्किल लग रहा था तब उन्होंने सोचा की स्वास्थ्य क्षेत्र में बहुत ज़्यादा बदलाव की ज़रूरत है। अनूपमा एक डॉक्टर होने के नाते मरीजों को तो देख रही थी लेकिन कहीं ना कहीं उनका दिमाग़ सरकारी व्यवस्था की तरफ़ जा रहा था। तब उन्हें लगा कि अगर ग्राउंड लेवल पर कुछ सुधार करना है और मरीजों का कुछ भला करना है तो उन्हें सिविल सर्विस का रुख करना ही होगा।
और फिर बेटी वाली बात जो बड़ी मार्मिक हैं
अनुपमा के साथ एक समस्या आई कि उनके पास एक छोटी बेटी थी, जिसके साथ रहकर तैयारी करना बहुत ही मुश्किल था। तब उन्होंने 1 साल के लिए दिल्ली जाकर तैयारी करने की सोची और वहाँ जाकर कोचिंग में दाखिला लिया और कड़ी मेहनत करनी शुरू की। वह दिल्ली तो चली गई लेकिन हर वक़्त उनका मन अपने बच्चे में ही लगा रहता था और वह अपने बच्चे के लिये दिन-रात रोती रहती थी। कई बार तो उन्होंने दिल्ली छोड़ वापस आने का फ़ैसला भी किया। लेकिन तब उनके पति और उनके ननद ने उन्हें काफ़ी समझाया और उन्हें अपने लक्ष्य पर फोकस करने के लिए कहा। उन्होंने सोचा कि अगर जल्दी जाना है तो उन्हें पूरी तरह से अपने पढ़ाई पर ध्यान केंद्रित करना चाहिए और उन्होंने अपना ध्यान केंद्रित करना शुरू किया।
अनूपमा शुरू से ही 1 साइंस के स्टूडेंट रहे और उन्हें आर्ट्स पढ़ने में काफ़ी समस्या आती थी उन्हें कुछ समझ में नहीं आता था। तब उन्होंने सोचा कि सिर्फ़ कोचिंग करने से कुछ नहीं होता, यह तो सिर्फ़ एक गाइड का काम करता है। उन्हें अगर सफलता पानी है तो इसके लिए सेल्फ स्टडी पर भी फोकस करना होगा।
अनूपमा ने पढ़ाई के लिए एक नियम बना लिया था कि 1 दिन में उन्हें अपना यह कोर्स ख़त्म कर लेना है उसके बाद ही वह अपने बेटे से बात करेंगी। इस तरह उन्होंने अपने लिए पूरी तरह से नियम और अनुशासन बना रखा था तैयारी के दौरान हर ढाई महीने पर वह अपने घर आती थी। वह हर रोज़ सिर्फ़ एक तय समय पर ही अपने बेटे से वीडियो कॉल पर बात करती थी। उन्होंने यह भी तय कर रखा था कि उन्हें अपने पहले ही प्रयास में सफलता हासिल करनी है। उनकी यह मेहनत उनका प्रयास रंग भी दिखाया और 2019 में उन्होंने अपने पहले ही प्रयास में
90वां रैंक के साथ सफलता हासिल की
अनूपमा ने कहा कि अगर आप अपने लक्ष्य को पूरा करने के लिए सपने देखते हैं तो उसे ज़रूर पूरा करें बस इसके लिए आप में हिम्मत और धैर्य होनी चाहिए और इसके साथ ही ख़ुद पर विश्वास भी आप अपने सपने को पूरा कर सकती हैं।
इस तरह अनूपमा का यह साहसी कदम, जिसमें उन्होंने अपने पूरे परिवार अपने इतने छोटे बच्चे को छोड़कर तैयारी करने का फ़ैसला लिया। वाकई उनका यह क़दम सराहनीय है और इससे पूरे देश के लोगों को प्रेरणा मिलनी चाहिए। यह उनकी मेहनत और लगन का ही परिणाम है कि वह पहली ही बार में सफलता हासिल कर सकी।