छत पर बागवानी करते हुए जिस चीज की चिंता सबसे अधिक होती है वह है गमले का वजन। यही वजह है कि कई लोग टेरेस गार्डनिंग करने से बचते हैं। 

उन्हें लगता है कि गमले, मिट्टी और फिर पौधों के वजन से कहीं उनकी छत को कोई नुकसान न हो जाये। इसके अलावा, पौधों को पानी देने के कारण कई बार छत में सीलन भी आने लगती है। लेकिन इन समस्याओं का हल यह नहीं है कि आप बागवानी ही न करें। जरुरी नहीं कि बागवानी करने के लिए आपको भारी गमले, मिट्टी का ही प्रयोग करना पड़े। बल्कि आज के हाई-टेक जमाने में तो आप मिट्टी के बिना भी पेड़-पौधे लगा सकते हैं। जैसा कि आंध्र प्रदेश के शेख अब्दुल मुनाफ कर रहे हैं।

पिछले कई सालों से छत पर सब्जियां और सजावटी पेड़-पौधों की बागवानी कर रहे अब्दुल बताते हैं कि वह पौधे लगाने के लिए मिट्टी का प्रयोग नहीं करते हैं। पारम्परिक तरीकों से पौधे लगाने की बजाय अब्दुल ने ‘सॉइललेस’ गार्डनिंग की तकनीक ‘हाइड्रोपोनिक‘ अपनाई है। जिसमें आप पौधों को उगाने के लिए मिट्टी की जगह अन्य जैविक माध्यम जैसे कोकोपीट, खाद या सिर्फ पानी का प्रयोग करते हैं। अब्दुल ने अपने सभी पौधे कोकोपीट में लगाए हुए हैं और उन्हें अच्छी उपज मिल रही है।

 

Hydroponics Gardening

 

पुरानी प्लास्टिक की बाल्टी, बोतलों का किया इस्तेमाल

अब्दुल बताते हैं, “मैंने भी शुरुआत में छत पर मिट्टी से ही बागवानी शुरू की थी। लेकिन इसमें काफी समस्याएं होने लगी थी। एक तो छत पर वजन बढ़ने का डर मुझे हमेशा रहता था। दूसरा पौधों में भी कोई न कोई बिमारी लगती रहती थी और बार-बार मिट्टी ला पाना भी मुश्किल था। इसलिए मैंने सोचा कि क्यों न कुछ अलग किया जाए और मुझे हाइड्रोपोनिक तकनीक के बारे में पता चला। मैंने अपने घर की छत पर पीवीसी पाइप वाला एक सिस्टम लगवाया। लेकिन कई बार होता है न कि पहले से बनी हुई चीजें आपकी जरूरत के हिसाब से नहीं हो पाती हैं।”

उन्होंने सिर्फ पानी वाला हाइड्रोपोनिक सिस्टम लगवाया था। जिसमें कम तापमान में तो अच्छे से सभी पौधे विकसित हुए लेकिन गर्मियों में जब तापमान बढ़ने लगा तो पानी गर्म हो जाता था। पानी गर्म होने के कारण उनके पौधे मरने लगे। इसके बाद, अब्दुल ने सोचा कि ऐसा क्या किया जाए जिससे उन्हें मिट्टी भी इस्तेमाल न करनी पड़े और बागवानी भी अच्छे से हो जाए। “मुझे लोगों ने कोकोपीट इस्तेमाल करने की सलाह दी। कोकोपीट नारियल के फाइबर से बनता है और पौधों के लिए काफी पौष्टिक भी माना जाता है। साथ ही, यह अच्छा ग्रोइंग मीडिया है,” उन्होंने कहा।

 

Hydroponics System For Terrace Gardening

 

अब्दुल ने लगभग तीन साल पहले खुद एक हाइड्रोपोनिक सिस्टम तैयार किया। उन्होंने बताया कि इसके लिए उन्होंने पुरानी प्लास्टिक की बाल्टियां, ड्रम, छोटे पाइप आदि खरीदे। सबसे पहले उन्होंने पांच-छह बाल्टी में ही सिस्टम बनाया। उन्होंने बाल्टी में नीचे की तरफ एक साइड में छेद किया, जिसमें से वह ड्रिप इरिगेशन के लिए पाइप डाल सकें। इसके बाद उन्होंने बाल्टी में कोकोपीट और नीम की खली पाउडर मिलाकर पॉटिंग मिक्स भरा। सभी बाल्टी में नीचे और ऊपर दोनों तरफ से ड्रिप इरिगेशन सिस्टम की व्यवस्था की गयी।

“पानी का सिस्टम ऑटोमेटिक है। मैंने इसके लिए पुराने कूलर की मोटर का इस्तेमाल किया है। बड़े ड्रम में पानी भरकर सभी पाइप को मोटर से कनेक्ट करके इसमें डाला है। जिससे समय-समय पर अपने आप पौधों को पानी मिलता रहता है,” उन्होंने बताया।

 

लगाए टमाटर, बैंगन, मिर्च, सहजन जैसी सब्जियां

उन्होंने अपने 20×76 फ़ीट की छत पर 100 बाल्टियों से हाइड्रोपोनिक सिस्टम सेट किया हुआ है। उनके बगीचे में पीवीसी पाइप का भी हाइड्रोपोनिक सिस्टम है। कुछ दूसरे छोटे-बड़े गमलों में उन्होंने सजावटी पौधे जैसे इंग्लिश आइवी, लुडविगिया, कुछ फूलों के तो इन्सुलिन और नीम जैसे पौधे भी लगाए हुए हैं। वह बताते हैं कि उनके बगीचे में छोटे-बड़े 100 से ज्यादा पेड़-पौधे हैं। बात अगर सब्जियों की करें तो उन्होंने बताया कि वह टमाटर, हरी मिर्च, बैंगन, पालक, खीरा, मेथी, कुंदरू, भिंडी जैसी सब्जियों के साथ-साथ सहजन भी उगा रहे हैं।

“मेरे घर के लिए लगभग 70% सब्जियां बगीचे से आ जाती हैं। कई बार कुछ सब्जियां इतनी ज्यादा हो जाती हैं कि मैं अपने रिश्तेदारों और पड़ोसियों को भी बांट देता हूं। सबको मेरे बगीचे की जैविक सब्जियां बहुत ही पसंद है। मैं किसी भी तरह का रसायन अपने पेड़-पौधों पर इस्तेमाल नहीं करता हूं। साथ ही, मिट्टी में लगाने पर परेशानी यह है कि आपको नहीं पता कि जो मिट्टी अपने ली है वह सही है या नहीं। इसलिए मिट्टी में उगी सब्जियों से ज्यादा अच्छी गुणवत्ता हाइड्रोपोनिक सिस्टम में उगी सब्जियों की होती है। क्योंकि इनमें किसी भी तरह की कोई अशुद्धि नहीं आती है,” वह कहते हैं।

 

Growing Organic And Healthy Vegetables

 

अपने पौधों को कीटों से बचाने के लिए अब्दुल नीम के तेल या खट्टी छाछ को पानी में मिलाकर पौधों पर स्प्रे करते हैं। इससे किसी भी तरह के कीट पौधों पर नहीं आते हैं। इसके अलावा, वह बीच-बीच में बाल्टियों में कोकोपीट में नया कोकोपीट और नीम की खली मिलाकर इसकी गुणवत्ता बरक़रार रखते हैं। उनका कहना है कि कोकोपीट में नमी बहुत ज्यादा समय तक रहती है, इससे आपको बार-बार पानी देने की जरूरत नहीं पड़ती है। लेकिन नमी के कारण पौधों में फंगस लगने का भी डर रहता है। इसलिए नीम की खली मिलाते हैं क्योंकि यह एंटी-फंगल है।

 

अंत में अब्दुल बस यही कहते हैं कि अगर आप हाइड्रोपोनिक सिस्टम में बागवानी करना चाहते हैं तो पहले इस तकनीक को सीखें और फिर निवेश करें। क्योंकि सामान्य मिट्टी में बागवानी की तुलना में यह बागवानी थोड़ी महंगी है। इसलिए हमेशा बेसिक ट्रेनिंग लेकर ही शुरुआत करें। साथ ही, बीच-बीच में पानी का पीएच और टीडीएस लेवल भी चेक करते रहें।


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