आज के दौर में अधिकांश लोग अपने ख़ुद के स्टार्टअप का सोचने लगे हैं। इनमें से कुछ इसके बीच में आने वाली बाधाओं जैसे-असफल होने पर पूंजी का फंसना या मार्केट में उपस्थित कंपटीशन से घबराकर बस सोंच कर रह जाते हैं। वहीं कुछ लोग इन बाधाओं की चिंता ना करते हुए अपने कारोबार के प्रति दृढ़ संकल्पित होकर उसे शुरू कर देते हैं, और अपने लगन और परिश्रम के दम पर सफलता भी प्राप्त करते हैं।
आज हम आपका परिचय ऐसे ही दो दोस्तों से कराने जा रहे हैं जिन्होंने अपनी अच्छी-खासी नौकरी को छोड़ कर एक स्टार्टअप का शुरुआत कर दिया और आज सफल साम्राज्य स्थापित करने की ओर अग्रसर हैं।
बचपन से ही दोस्त रहे दिल्ली के ‘पार्थ वीरेंद्र‘ (Parth Virendra) और ‘साहिल चोपड़ा‘ (Sahil Chopra) की प्राथमिक शिक्षा दिल्ली के ‘डॉन बॉस्को स्कूल’ से हुई जिसके बाद अलग-अलग कॉलेजों से उन्होंने बीटेक और फिर एमबीए की पढ़ाई पूरी की। पढ़ाई पूरी करने के बाद दोनों ने देश-विदेश के अनेक कंपनियों में प्रबंधन सलाहकार के रूप में काम किया। एक दूसरे से दूर रहने के बावजूद भी दोनों दोस्त फ़ोन के माध्यम से लगातार एक दूसरे के संपर्क में रहें और अक्सर बिजनेस के बारे में बात करते रहते थे। नौकरी के दौरान इन्हें देश तथा विदेश के अनेक जगहों पर घूमने को मिला जिससे इन्हें यह आईडिया हो गया कौन-सा बिजनेस ट्रेंड में है और कौन-सा व्यापार उनके लिए कारगर साबित होगा।
काफी शोध के बाद उनका ध्यान बाज़ार में दूध के बढ़ते मांग और उसकी पूर्ति के लिए धड़ल्ले से चलने वाले मिलावट के तरफ़ गया। उन्होंने सोचा की हम मिलावट मुक्त दूध का व्यवसाय करें तो हमारे लिए यह सही साबित होगा और लोगों को इससे फायदा भी मिलेगा। उन्होंने काफ़ी विचार-विमर्श करने के बाद अपनी बनी-बनाई नौकरी को छोड़ दी और ‘हैप्पी नेचर‘ के नाम से छोटे स्तर पर अपने कंपनी की नींव रखी, जहाँ अपने आस-पास के परिचितों को दिन में 20 लीटर दूध सप्लाई करने के साथ उन्होंने अपना व्यवसाय शुरू कर दिया। शुरुआत में पूंजी काफ़ी कम निवेश की गई थी इसलिए अधिकतर काम जैसे-गाय का देखभाल करना दूध सोर्सिंग करना, उनकी पैकेजिंग करना और डिलीवरी करना ये ख़ुद ही करते थें।
‘हैप्पी नेचर‘ ने अपनी उच्चतम गुणवत्ता दूध के कारण काफ़ी कम समय में ही काफ़ी लोगों को आकर्षित कर लिया। वर्तमान में वह दिल्ली में लगभग 2000 लीटर दूध और दूध उत्पादों की सप्लाई कर रहे हैं। आज उन्होंने अपना ख़ुद का फॉर्म बना लिया है जिसमें गायों के रहने के साथ-साथ उनके लिए चारे भी उगाए जाते हैं।
उनका मानना है कि ‘हैप्पी गाय’ ही ‘हैप्पी मिल्क’ दे सकती है और इसीलिए वह हर संभव प्रयास करते हैं कि यहाँ उनकी गायें हैप्पी रहें। वे काफ़ी लगन से अपने कंपनी को चला रहे हैं परिणामतः आज उनका व्यवसाय काफ़ी आगे बढ़ गया है और अभी उनके कंपनी में बेकरी प्रोडक्ट्स भी बनने लगे हैं। दोनों दोस्त ‘हैप्पी नेचर’ को राष्ट्रीय पहचान दिलाने के प्रयास में लग गए हैं।
वे काफ़ी लगन से अपने कंपनी को चला रहे हैं परिणामतः आज उनका व्यवसाय काफ़ी आगे बढ़ गया है और अभी उनके कंपनी में बेकरी प्रोडक्ट्स भी बनने लगे हैं। दोनों दोस्त ‘हैप्पी नेचर’ को राष्ट्रीय पहचान दिलाने के प्रयास में लग गए हैं।