सड़क किनारे ठंड से ठिठुर रहे एक भिखारी की हकीकत जानकार मध्यप्रदेश पुलिस के डीएसपी दंग रह गए। दरअसल वो भिखारी उन्हीं के बैच का पुलिस का असफर निकला। साथी पुलिस अधिकारी के ‘राजा से रंक’ बनने जाने की यह पूरी कहानी बेहद दिलचस्प है।

डीएसपी ने जूते व जैकेट दी पहनने को

डीएसपी ने जूते व जैकेट दी पहनने को

हुआ यूं कि 10 नवंबर को ​मध्य प्रदेश की 28 विधानसभा सीटों पर हुए उपचुनाव के वोटों की गिनती हुई है। ग्वालियर में मतगणना के बाद डीएसपी रत्नेश सिंह तोमर और विजय सिह भदौरिया झांसी रोड से निकल रहे थे। रास्ते में बंधन वाटिका के पास फुटपाथ पर उन्हें एक भिखारी ठंड से ठिठुरता दिखा। डीएसपी ने मानवता के नाते गाड़ी रोकी और नीचे उतरकर वे भिखारी के पास गए। रत्नेश ने उसे अपने जूते और विजय सिंह भदौरिया ने अपनी जैकेट दी।

दस साल से भिखारी बना हुआ था साथी

दस साल से भिखारी बना हुआ था साथी

फिर दोनों असफर उस भिखारी से बातें करने लगे। बातों ही बातों में जो सच निकलकर सामने आया उसे सुनकर दोनों दंग रह गए। दरअसल, वो भिखारी डीएसपी के बैच का ही पुलिस अधिकारी था। बीते दस साल से लावारिस घूम रहा है। भिखारी बना हुआ है। भीख में जो कुछ में मिल जाता है। उसी से पेट भर लेता है। रात को जहां पनाह मिल जाती है वहीं सो जाता है।

 भिखारी का नाम है मनीषा मिश्रा

भिखारी का नाम है मनीषा मिश्रा

​मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार भिखारी से बातचीत में पता चला कि उसका नाम मनीष मिश्रा है। वह मध्य प्रदेश का ही रहने वाला है। इन दोनों अफसरों के साथ ही मनीष मिश्रा भी वर्ष 1999 में मध्य प्रदेश पुलिस में सब इंस्पेक्टर पद भर्ती हुआ था। उसके साथी रत्नेश सिंह तोमर और विजय सिह पदोन्नति पाकर डीएसपी पद तक पहुंच गए जबकि मनीष मिश्रा भिखारी बन गया।

 एसआई से ऐसे भिखारी बना ​मनीष

 

एसआई से ऐसे भिखारी बना ​मनीष

मनीष मिश्रा ने दोनों साथी अफसरों को पहचान लिया और उनके सामने अपनी दर्दभरी कहानी बयां की, जो हर किसी के दिल का झकझोर देने वाली है। मनीष मिश्रा मध्य प्रदेश पुलिस में बतौर एसएचओ कई पुलिस थानों में तैनात रहे। वर्ष 2005 तक मनीष की जिंदगी में सब कुछ सामान्य चल रहा था। फिर अचानक धीरे-धीरे मानसिक स्थिति खराब हो गई और वो भिखारी बन गया।

 अचूक निशानेबाज भी था मनीष

अचूक निशानेबाज भी था मनीष

दरअसल, मनीष बेहतरीन पुलिस अधिकारी होने के साथ-साथ अचूक निशानेबाज भी था। अंतिम पोस्टिंग मध्य प्रदेश के दतिया पुलिस थाने में थी। फिर मानसिक स्थिति खराब होने के कारण परिजनों ने इनका कई जगह इलाज करवाया, मगर कहीं भी ना दवा लगी ना ही कोई दुआ काम आई।


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