दिल्ली नगर निगम (एमसीडी) के अस्तित्व में आने के बाद सबसे बड़ी चुनौती आर्थिक स्थिति सुधारने की होगी। ऐसे में संपत्ति से लेकर विभिन्न करों में एकरूपता लाने के लिए जल्द ही पूर्व में दक्षिणी दिल्ली नगर निगम (एसडीएमसी) में लागू करों को एमसीडी में लागू किया जा सकता है।
वहीं, इससे उत्तरी व पूर्वी दिल्ली के लोगों पर आर्थिक बोझ पड़ सकता है। हालांकि, यह फैसला विशेष अधिकारी को लेना है, लेकिन इसे आने वाले दिनों में अपनाया जा सकता है, क्योंकि उत्तरी और पूर्वी निगम की तुलना में दक्षिणी निगम में संपत्तिकर और लाइसेंस फीस ज्यादा है।
तीन निगम होने से अलग-अलग नीतियां थीं। साथ ही कर की गणना भी अलग-अलग तरीके से होती थी। ऐसे में दिल्ली नगर निगम के अस्तित्व में आने के बाद नीतियों में एकरूपता लाने की जरूरत है। ऐसे में इस दिशा में दक्षिणी निगम में लागू नीतियों के आधार पर ही एमसीडी की नीति अपनाई जाएगी।
निगम के एक वरिष्ठ अधिकारी ने कहा कि पूर्वी और उत्तरी निगम की तुलना में दक्षिणी निगम का राजस्व तंत्र ज्यादा मजबूत था। यही वजह है कि संपत्तिकर से दो हजार करोड़ रुपये तक की आय होती थी।
इसी प्रकार हेल्थ लाइसेंस, ट्रेड लाइसेंस से लेकर पार्किंग और विज्ञापन का राजस्व भी ज्यादा होता था। इसलिए उन नीतियों को लागू कर निगम का राजस्व बढ़ाने की कोशिश होगी। उल्लेखनीय है कि दिल्ली में वर्ष 2004 में संपत्तिकर के लिए यूनिट एरिया मेथड लागू हुआ था।
इसके बाद निगम मूल्याकंन समिति की चार रिपोर्टो में संपत्तिकर में बढ़ोतरी की सिफारिश की गई थी, लेकिन राजनीतिक हस्तक्षेप से यह संभव नहीं हो पाया था। हालांकि, दक्षिणी निगम ने बीते वर्षो में संपत्तिकर पर एक प्रतिशत शिक्षा उपकर भी लगाया था।
इससे निगम के राजस्व में प्रतिवर्ष करीब 80 करोड़ रुपये की बढ़ोतरी हुई थी। इतना ही नहीं, समय-समय पर हेल्थ और ट्रेड लाइसेंस शुल्क भी बढ़ाए गए। दक्षिणी निगम में सामान्य रेस्तरां खोलने का शुल्क 25 हजार रुपये था, जबकि उत्तरी निगम में यह एक और पूर्वी निगम में महज पांच हजार रुपये था।