मुगलों के इतिहासों के बीच दिल्ली को बसाने वाले प्रथम राजा अनंगपाल तोमर द्वितीय का इतिहास कहीं दबकर रह गया है। जबकि सच्चाई यह है कि दिल्ली के अस्तित्व की पहचान राजा अनंगपाल तोमर के बिना हमेशा अधूरी ही रहेगी। आज भी कुतुबमीनार के आस-पास के क्षेत्रों में राजा अनंगपाल तोमर की कहानियों व उनके राज्य की खुशहाली के बारे में टूटी-फूटी इमारतें व ऐतिहासिक दस्तावेजों के माध्यम से पता लगाया जा सकता है।
वह ऐसे पहले राजा थे जिन्होंने महरौली के आस-पास के क्षेत्र में अपने नगर को बसाया ही नहीं बल्कि उसकी सुरक्षा के लिए मोटी-मोटी चारदीवारी भी बनवाई जिसके अवशेष अभी भी देखने को मिलते हैं और इन्हें लालकोट का किला कहा जाता है। आइए आज हम आपको बताते हैं उस दौरान बनाई गई राजा अनंगपाल की कुछ ऐतिहासिक इमारतें व कहानियां।
सदानीरा अनंगपाल झील
अनंगपाल तोमर द्वितीय के इतिहास को बताने के लिए राष्ट्रीय स्मारक प्राधिकरण की ओर से हाल ही में एक अभियान शुरू किया गया है। जिसमें उनके द्वारा बनाए गए अवशेषों को दोबारा संरक्षित करने का कार्य शुरू किया गया है। इसके तहत सबसे पहला अभियान अनंगपाल द्वारा बनाई गई 18 मीटर की सदानीरा अनंगपाल झील को राष्ट्रीय स्मारक घोषित करवाने की मांग उठाई जा रही है। जो पहले कूडाघर में तब्दील हो गई थी लेकिन अब दोबारा उसे संरक्षित किया जा रहा है।
विष्णु स्तंभ या लौह स्तंभ
कुछ इतिहासकारों का कहना है कि 7वीं से 8वीं शताब्दी में तोमरों का शासन आया जबकि 11वीं शताब्दी में राजा अनंगपाल तोमर द्वितीय दिल्ली की गद्दी पर बैठे। उनका राज पालम से लेकर महरौली इलाके तक था। यहां उन्होंने 27 जैन और हिंदू मंदिरों का निर्माण करवाया था। जिनमें विष्णु मंदिर के समक्ष उन्होंने विष्णु ध्वज स्तंभ की स्थापना मिश्रधातु द्वारा की थी जोकि आज भी वर्तमान कुतुब परिसर में खडा है और इसमें जंग नहीं लगा। जबकि मंदिरों की कथा संस्कृत के अभिलेखों में मिलती है।
लालकोट का किला
संजय वन के भीतर आज भी एक दीवार सिर्फ बची है जिसे लालकोट की दीवार कहा जाता है, यह दिल्ली को सुरक्षित रखने के लिए पहली बार किलेबंदी का भी सबूत देती है। हालांकि इसे देखने के लिए संजय वन के बीच से होकर जाया जा सकता है क्योंकि दीवार का बहुत थोडा सा हिस्सा अब देखने को मिलता है। जब विग्रहराज चैहान ने तोमरों को हराकर लालकोट के किले पर कब्जा किया और पृथ्वीराज चैहान गद्दी पर बैठे तो उन्होंने रायपिथौरागढ बनवाते समय लालकोट को अपनी परिधि में ले लिया था।
मुगलों ने किया था लालकोट किले के दरवाजे से प्रवेश
कई ऐतिहासिक घटनाओं का साक्षी भी लालकोट का किला रहा है। खंडहर देखकर पता चलता है कि कभी इस किले में प्रवेश के लिए चार दरवाजे थे। पश्चिमी द्वार का नाम रंजीत द्वार था जिसे बाद में गजनी द्वार कहा जाने लगा। एपी भटनागर की पुस्तक ‘देल्ही एंड इट्स फोर्ट पैलेस -ए हिस्टोरिकल प्रिव्यूज्’ में कहा गया है कि विजय के बाद मुस्लिम सेना ने इसी रंजीत द्वार से नगर में प्रवेश किया था। हालांकि अब इस दरवाजे के मात्र अवशेष ही बचे हैं।
पृथ्वीराज रासो में भी मिलता है जिक्र
अनंगपाल तोमर द्वितीय के नगर का जिक्र पृथ्वीराज रासौ में भी मिलता है। पृथ्वीराज रासौ में चंदबरदाई ने इसे खूबसूरत किले, झीलों, मंदिरों का नगर कहा है जहां कि प्रजा बहुत खुशहाल थी। लेकिन इस नगर के उजडने के पीछे की वजह वो रासौ में लौह स्तंभ को उखडवाना कहते हैं। उन्होंने लिखा भी है कि ‘कीली तो ढीली भई, तोमर भयो मतिहीन’। यानि लौह स्तंभ को जैसे ही किलोकरी जिसे किलोकडी भी कहते हैं, वहां से उखाडा गया तभी से तोमरों का सर्वनाश चालू हो गया। चंदरबरदाई इस स्तंभ को शेषनाग के सिर पर रखे जाने की बात भी कहते हैं।
राजा अनंगपाल तोमर की मूर्ति लगाने व इतिहास को बताने की योजना
बता दें कि हाल ही में राष्ट्रीय स्मारक प्राधिकरण के चेयरमैन तरुण विजय ने एक काफी बडा कार्यक्रम राजा अनंगपाल तोमर को लेकर किया था। जिसका उद्देश्य हिंदू राजा द्वारा बसाई गई दिल्ली को दोबारा लोगों के जेहन में जिंदा करना था। फिलहाल यहां राजा अनंगपाल की मूर्ति लगाने की योजना चल रही है। अनंगताल व लालकोट की दीवार को राष्ट्रीय स्मारक घोषित कर पर्यटन स्थलों में शामिल करने की कोशिश की जा रही है।