कोरोना महामारी को मध्यनज़र रखते हुए दिल्ली सरकार ने कोरोना मरीज़ों के लिए अस्पतालों में 80 प्रतिशत तक आईसीयू बेड आरक्षित करने का फैसला सुनाया था। लेकिन एसोसिएशन ऑफ हेल्थ केयर प्रोवाइडर्स (एएचपीआई) ने इस फैसले को हाई कोर्ट में चुनौती दी है। एएचपीआई के महानिदेशक डॉ. गिरधर ज्ञानी ने बताया है की केवल 1 से 2 फीसदी कोरोना मरीज़ों को आईसीयू की ज़रूरत पढ़ती है।
डॉ. ज्ञानी जी का कहना है यदि 80 प्रतिशत आईसीयू आरक्षित कर दिए जाय तो अस्पताल में आये अन्य (नॉन कोरोना) मरीज़ो का उपचार कैसे होगा? उनका कहना है जिन मरीज़ों को आईसीयू की ज़रूरत पड़ती है उनमें से अधिकतर मरीज़ फ़िल्हाल नॉन कोविड वाले है क्योंकि दिल्ली में अभी रोज़ाना चार हज़ार की औसत से मरीज़ प्रतिदिन मिल रहे है। ऐसे में 80 फ़ीसदी तक आईसीयू बेड आरक्षित करना एक बेतुका फैसला है जो नॉन कोविड मरीज़ों को भारी पड़ेगा।
दिल्ली के सुपर स्पेशलिटी अस्पताल के निदेशक ने कहा है कि सरकार उनसे बिना सलाह-मशवरा किये ये फैसला ले रही है। उन्होंने कहा कि अस्पताल दिल्ली सरकार से मिली ज़मीन पे बना है पर इसका यह मतलब नहीं कि सरकार उनसे बिना किसी परामर्श के कुछ भी फैसला सुनाए। अस्पताल ने अपना उदाहरण लेके बताया कि वहाँ पे आईसीयू के 100 से ज़्यादा बेड है लेकिन कोरोना के केवल 15 ही केस भर्ती हुए है। आपको बता दे कि इस फैसले को वापिस लेने के लिए निजी अस्पतालों द्वारा अपील भी की गई थी लेकिन सुनवाई न हो पाने के कारण संगठन को मजबूरी में हाईकोर्ट में गुहार लगानी पड़ी।