मेट्रो परिचालन के दौरान उसकी रफ्तार से होने वाले कंपन (वाइब्रेशन) स्तर को लेकर डीएमआरसी जांच कराएगी। यह जांच दो मेट्रो कॉरीडोर के 80 स्थानों पर की जाएगी। मेट्रो परिचालन के अलग-अलग समय पर निगरानी के बाद अगर कंपन तय मानकों से अधिक है तो उसे कम करने के लिए कदम उठाएं जाएंगे। जिससे मेट्रो कॉरीडोर के आस-पास स्थित घरों, इमारतों में कंपन महसूस ना हो। मेट्रो का कहना है कि परिचालन के सुरक्षा मानकों के लिए यह जरूरी है।
दिल्ली मेट्रो ने 80 स्थानों पर कंपन स्तर की जांच के लिए निविदा भी जारी कर दी है। जिन दो लाइनों के लिए यह निविदा जारी की गई है उसमें मजेंटा लाइन (जनकपुरी पश्चिम से बॉटेनिकल गार्डन) और यलो लाइन (जहांगीरपुरी से गुरूग्राम के बीच चलती है। यह दोनों कॉरीडोर के कुछ हिस्से बेहद आवासीय इलाकों से होकर गुजरते है। जहां पहले भी दिल्ली मेट्रो को स्थानीय लोगों की ओर से घरों में कंपन होने की शिकायत मिल चुकी है।
मेट्रो के मुताबिक यह उन स्थानों में कंपन संबंधी समस्याओं को खत्म करने लिए अपनाया जाता है जहां आवासीय भवन मेट्रो कॉरीडोर के बेहद करीब होते है या ऐसी जगह जहां यह अनुमान लगाया जाता है कि यहां मेट्रो परिचालन के दौरान कंपन की समस्या हो सकती है। इसलिए हम शुरू से इस बात का ध्यान रखते है कि भूमिगत लाइन पर कंपन का स्तर तय सीमा के अंदर रहे। इससे यह भी पता चलता है कि ट्रैक और ट्रेन तय सुरक्षा मानकों पर ठीक से काम कर रहे है। नजदीक स्थित आवासीय इलाकों में बने घरों इमारतों को नुकसान ना पहुंचे।
इन इलाकों में पहले हो चुकी है जांच
दिल्ली मेट्रो ने यलो लाइन पर पड़ने वाले कुछ आवासीय इलाके जहां नजदीक से मेट्रो की भूमिगत लाइन गुजरती है वहां पहले ही कंपन की जांच करा चुकी है। इसमें साकेत, मालवीय नगर, बेगमपुर, हौजखास, खान मार्केट, गोल्फ लिंक, आजादपुर, पालम और दशरथपुरी जैसे आवासीय इलाके है। यहां से स्थानीय लोगों ने कंपन होने की शिकायत की थी। मेट्रो का कहना है कि जहां भी कमिया थी उसे दूर कर लिया गया है।
कंपन ज्यादा हुआ तो माइक्रो स्प्रिंग तकनीकी से करते है दूर
दिल्ली मेट्रो अधिकारियों के मुताबिक मेट्रो परिचालन के दौरान कंपन को कम करने के लिए पहले मेट्रो फेज एक व दो में रबड़ की मोटी गद्दी की दो लेयर लगाई जाती थी। उसके बाद तीसरे चरण में मेट्रो ने इस और बेहतर करने के लिए तीन चरण में लगाएं। उसके बाद भी जहां ज्यादा कंपनी की समस्या है वहां पर माइक्रो स्प्रिंग तकनीकी का प्रयोग किया जात है। इसमें एक मोटी पॉलीयूरेथेन पैड शीट ट्रैक के नीचे फैलाई जाती है।