अफगानिस्तान में तालिबान के कब्जे के बाद अफरा-तफरी का माहौल बना हुआ है। सभी धार्मिक समुदाय अपने-अपने समाज के लोगों की सुरक्षा सुनिश्चित करने में लगे हुए हैं। इसी क्रम में दिल्ली सिख गुरुद्वारा प्रबंधक कमेटी (डीएसजीएमसी) दिल्ली के अध्यक्ष मनजिंदर सिंह सिरसा ने ट्वीट कर बताया है कि वह लगातार काबुल की गुरुद्वारा कमेटी के प्रबंधक एस गुरुनाम सिंह और गुरुद्वारा करते परवान साहिब में शरण ली हुई संगत के संपर्क में हैं। हालांकि, आज तालिबानी नेता गुरूद्वारा साहिब में आए और उन्होंने यहां रह रहे हिंदू और सिख लोगों से मुलाकात कर उन्हें उनकी सुरक्षा का आश्वासन दिया है।

उल्लेखनीय है कि 15 अगस्त के दिन से अफगानिस्तान की राजधानी काबुल पर तालिबान आतंकवादियों के कब्जे के बाद भारत सहित सभी देश अपने नागरिकों को वहां से निकालने में लगे हुए हैं। वहीं, कुछ अफगानिस्तानी लोग भी वहां नहीं रहना चाहते। वे लगातार दूसरे देशों में शरण लेने के लिए भाग रहे हैं। भारत में भी अभी तक कई लोगों को वापस लाया जा चुका है। साथ ही अन्य फंसे हुए लोगों को निकालने के लिए भी प्रयास जारी हैं।

फोन पर चला पता दरवाजे के बाहर मंडरा रहे तालिबानी

इधर, अब्बास करीब तीन वर्ष पहले अपनी पत्नी व तीन बेटों के साथ काबुल में अपना सबकुछ छोड़कर दिल्ली आए थे। अब्बास काबुल में रह रहे अपने स्वजन से रोजाना बातें करते हैं। इनकी पत्नी आफताब का मायका मजार ए शरीफ में है। आफताब भी रोज अपने मायके फोन कर वहां के हालात की जानकारी लेती हैं, लेकिन रविवार से स्वजन से संपर्क नहीं हो पा रहा है।

आफताब बताती हैं कि आखिरी बार रविवार सुबह उनकी बात मां से हुई थी। तब मां ने कहा था कि दरवाजे पर तालिबान लड़ाके मंडरा रहे हैं। यहां दहशत का माहौल है। रह रहकर गोलियों की आवाज सुनाई देती है। आफताब बताती हैं कि मां धीमी आवाज में बातें कर रही थीं। फोन पर मां के बोलने के अंदाज से लग रहा था कि वह धीमी आवाज में इसलिए बातें कर रही थीं,क्योंकि उन्हें डर था कि कहीं उनकी आवाज लड़ाके न सुन लें। आफताब तालिबान के पुराने शासन काल को याद करते हुए बताती हैं कि घर की दहलीज से बाहर कोई औरत अकेले नहीं निकल जा सकती थी जब तक उसके साथ कोई पुरुष नहीं हो। उधर, अब्बास बताते हैं कि काबुल में हालात इतनी तेजी से बदले हैं कि वहां के निवासी कुछ भी समझ नहीं पा रहे हैं।


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