दुःख सब को मांझता है और चाहे स्वयं सबको मुक्ति देना वह न जाने , किन्तु जिन को मांझता है उन्हें यह सीख देता है कि सबको मुक्त रखें।’ जाने माने कवि सच्चिदानंद हीरानंद वात्स्यायन ‘अज्ञेय’ की ये पंक्तियां मनुष्यता की उस पहचान को दर्शाती हैं, जिसकी हर किसी को चाह रहती है। पश्चिमी दिल्ली के नांगलोई इलाके के रहने वाले प्रवीन कुमार गोयल (Praveen Kumar Goyal) के सेवाभाव को देखकर लगता है कि वह अज्ञेय की इन्हीं पंक्तियों को जीते हैं। उन्होंने भी दुख देखा और झेला है, यही वजह है कि अब वह जरूरतमंद लोगों की मदद के लिए आगे रहते हैं।
मूलरूप से पंजाब के शमानामंडी (पटियाला) के रहने वाले प्रवीन गोयल पिछले तकरीबन 3 साल से नांगलोई इलाके में ‘श्याम रसोई’ चला रहे हैं। रोजाना सुबह 11 बजे से 1 बजे तक वह लोगों को मात्र 1 रुपये में भरपेट खाना मुहैया कराते हैं। इतना ही नहीं, जिसके पास 1 रुपये भी नहीं होता वह भी भूखा नहीं जाता। उसे भी यहां पर भरपेट भोजन मिलता है।
हालात ने बनाया लाचार, पंजाब में आशियाना छोड़कर दिल्ली आना पड़ा
80 के दशक में अशांत पंजाब ने चिंता बढ़ाई तो घबराए प्रवीण कुमार गोयल वर्ष 1982 में रोजी-रोटी की तलाश में दिल्ली आ गए। उनका पूरा परिवार दिल्ली आया था। यहां पर उन्होंने लंबा संघर्ष किया। इस संघर्ष ने प्रवीण को सिखा दिया कि आदमी ही आदमी के काम आता है। एक-दूसरे की मदद से ही मनुष्य दरअसल मनुष्य रहता है वरना जानवर और इंसान का भेद ही मिट जाएगा।
10 रुपये प्रति थाली से हुई थी शुरुआत
प्रवीन गोयल के मुताबिक, नांगलोई में चर्चित शिव मंदिर के पास 365 दिन ‘श्याम रसोई’ चलती है। फिलहाल इसे श्याम रसोई चैरिटेबल ट्रस्ट के नाम से चलाया जा रहा है। कभी यहां पर 10 रुपये प्रति थाली खाना दिया जाता था, लेकिन कोरोना के दौर में लोगों का दुख देखा तो सिर्फ 1 रुपये में थाली देने लगे। फिर कोरोना के दौर में ऐसे दिन भी आए जब लोगों के हाथ खाली हो गए तो तय किया कि यहां पर आए किसी भी शख्स को भूखा नहीं लौटाया जाएगा। यह सिलसिला पिछले 3 साल से जारी है। यहां पर रोजाना 1 रुपये देकर कोई भी खाना खा सकता है। 1 रुपये भी नहीं हैं मुफ्त में भी भोजना कर सकता है।
रोजाना 1000 से अधिक लोग यहां पर खाते हैं खाना
जाति-धर्म और वर्ग से परे यहां पर हर किसी को पूरी श्रद्धा भाव से खाना दिया जाता है। यहां पर आने वाले एक ही साथ एक जैसा खाना खाते हैं। एक समय था जब प्रवीन गोयल का पूरा परिवार इसी काम में जुटता था, लेकिन अब आसपास के लोग और कालेज-स्कूल के छात्र भी आकर खाना परोसने में मदद करते हैं। मदद का कारवां रोजाना बढ़ रहा है। श्याम रसोई में 365 दिन 1 रुपये में खाना मिलाता है। प्रवीन गोयल बताते हैं कि वह यहां पर आने वाले हर शख्स को 1 रुपए में भरपेट स्वादिष्ट और पौष्टिक खाना खिला रहे हैं। अब तो रोजाना तकरीबन 1000 लोगों को भोजना कराया जाता है।
रोजाना सुबह से शुरू हो जाती है खाना बनाने की शुरुआत
नांगलोई में पिछले 3 साल से चल रही स्याम रसोई में रोजाना सैकड़ों लोग खाना खाने आते हैं। अपना बिजनेस भी छोड़ चुके प्रवीन अब पूरी तरह से इसी रसोई का प्रबंधन कर रहे हैं। वह बताते हैं कि श्याम रसोई की शुरुआत रोजाना सुबह से ही हो जाता है। सैकड़ों लोगों के लिए खाना बनना होता है, इसलिए सामान जुटाने के साथ खाना बनाने की प्रक्रिया भी सुबह से ही शुरू हो जाती है।
वह बताते हैं कि खाना खाने वालों की भीड़ 11 बजे से ही जुटने लगती है। ऐसे में किसी भी भूखे को अधिक इंतजार नहीं करना पड़े, इसलिए सुबह से ही खाना बनना शुरू हो जाता है। इसके लिए मददगार हर शख्स की भूमिका तय होती है। सब्जी काटने, खाना बनाने से लेकर खाना परोसने तक का काम सुबह से ही तय हो जाता है। प्रवीण सुबह 2 बजे उठ जाते हैं और इसके बाद खाना बनाने की प्रक्रिया शुरू हो जाती है।
प्रवीन गोयल का यह भी कहना है कि शुरुआत में बहुत दिक्कत आई, लेकिन अब हालात ठीक है। 1 रुपये में खाना खिलाने पर रोजाना 25000-30000 रुपये तक का खर्च आता है। लोग दान देते हैं तो यह संभव हो पाता है। दिल्ली ही नहीं, बल्कि अब तो दूसरों राज्यों से भी मदद मिलने लगी है और 1 रुपये में भोजना का कारवां बढ़ता जा रहा है। वह कहते हैं कि लोग मदद के तौर पर राशन दें तो हमारा काम और आसान हो जाएगा।
पिता से मिली सेवा भाव की प्रेरणा
पिता हरिचंद गोयल की वजह से आज प्रवीन इतना बड़ा सेवा का काम कर रहे हैं। उनके पिता कहते थे कि जो भी कमाई हो उसका 20 प्रतिशत दूसरों की मदद में लगा दो। उनका यह मंत्र प्रवीन गोयल पूरी तरह से अपने जीवन में उतार चुके हैं। वह कहते हैं कि पिता के साथ हम लोग रेलवे स्टेशन, बस अड्डों और सड़कों पर लोगों को मुफ्त में पानी पिलाते थे। यह सेवाभाव हमें आज यहां तक ले आया है। पिता की सीख की वजह से हमने यह मंत्र अपना लिया है- ‘कोई भूखा सोए ना और भूख रहे ना’, इसके साथ लोगों की सेवा का यह कारवां चलता रहेगा।